तद'स्य प्रियमभिपाथो' अश्याम् | नरो यत्र' देवयवो मद'न्ति | उरुक्रमस्य स हि बन्धु'रित्था | विष्णो''
पदे प'रमे मध्व उथ्सः' | प्रतद्विष्णु'स्स्तवते वीर्या'य | मृगो न भीमः कु'चरो गि'रिष्ठाः | यस्योरुषु'
त्रिषु विक्रम'णेषु | अधि'क्षयन्ति भुव'नानि विश्वा'' | परो मात्र'या तनुवा' वृधान | न
ते' महित्वमन्व'श्नुवन्ति ||
उभे ते' विद्मा रज'सी पृथिव्या विष्णो' देवत्वम् | परमस्य'
विथ्से | विच'क्रमे पृथिवीमेष एताम् | क्षेत्रा'य
विष्णुर्मनु'षे दशस्यन् | ध्रुवासो'
अस्य कीरयो जना'सः | ऊरुक्षितिग्^म् सुजनि'माचकार | त्रिर्देवः पृ'थिवीमेष एताम् | विच'क्रमे शतर्च'सं महित्वा | प्रविष्णु'रस्तु तवसस्तवी'यान् | त्वेषग्ग् ह्य'स्य स्थवि'रस्य नाम' ||
अतो' देवा अ'वन्तु नो यतो विष्णु'र्विचक्रमे | पृथिव्याः सप्तधाम'भिः | इदं विष्णुर्विच'क्रमे त्रेधा निद'धे पदम् | समू'ढमस्य पाग्^म् सुरे ||
त्रीणि' पदा विच'क्रमे विष्णु'र्गोपा अदा''भ्यः | ततो धर्मा'णि धारयन्' | विष्णोः कर्मा'णि पश्यत यतो'' व्रतानि' पस्पृशे | इन्द्र'स्य युज्यः सखा'' ||
तद्विष्णो''ः
परमं पदग्^म् सदा' पश्यन्ति सूरयः' | दिवीव चक्षुरात'तम् | तद्विप्रा'सो
विपन्यवो' जागृवाग्^म् सस्समि'न्धते | विष्णोर्यत्प'रमं पदम् | पर्या''प्त्या अन'न्तरायाय सर्व'स्तोमोऽति रात्र उ'त्तम मह'र्भवति सर्वस्याप्त्यै सर्व'स्य जित्त्यै सर्व'मेव तेना''प्नोति सर्वं' जयति ||
ॐ शांतिः शांतिः शान्तिः' ||
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