तैत्तिरीयारण्यकम् - 4, प्रपाठकः - 10, अनुवाकः - 41-44
ॐ यश्छन्द'सामृषभो विश्वरू'पः | छन्दोभ्योऽध्यमृता''थ्सम्बभूव' | स मेन्द्रो' मेधया'' स्पृणोतु | अमृत'स्य देवधार'णो भूयासम् | शरी'रं
मे विच'र्षणम् | जिह्वा मे मधु'मत्तमा | कर्णा''भ्यां भूरिविश्रु'वम् | ब्रह्म'णः
कोशो'ऽसि मेधया पि'हितः | श्रुतं मे' गोपाय ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः' ||
ॐ मेधादेवी जुषमा'णा न आगा''द्विश्वाची' भद्रा सु'मनस्य मा'ना | त्वया जुष्टा' नुदमा'ना दुरुक्ता''न् बृहद्व'देम विदथे' सुवीरा''ः | त्वया जुष्ट' ऋषिर्भ'वति देवि त्वया ब्रह्मा'ऽऽगतश्री'रुत त्वया'' | त्वया जुष्ट'श्चित्रं वि'न्दते वसु सा नो' जुषस्व द्रवि'णो न मेधे ||
मेधां म
इन्द्रो' ददातु मेधां देवी सर'स्वती | मेधां मे' अश्विना'वुभा-वाध'त्तां पुष्क'रस्रजा | अप्सरासु'
च या मेधा गं'धर्वेषु' च यन्मनः' | दैवीं'' मेधा सर'स्वती सा मां'' मेधा सुरभि'र्जुषताग् स्वाहा'' ||
आमां'' मेधा सुरभि'र्विश्वरू'पा हिर'ण्यवर्णा जग'ती जगम्या | ऊर्ज'स्वती पय'सा पिन्व'माना सा मां'' मेधा सुप्रती'का जुषन्ताम् ||
मयि' मेधां मयि' प्रजां मय्यग्निस्तेजो' दधातु मयि' मेधां मयि' प्रजां मयीन्द्र' इंद्रियं द'धातु मयि' मेधां मयि' प्रजां मयि सूर्यो भ्राजो' दधातु ||
ॐ हंस हंसाय' विद्महे' परमहंसाय' धीमहि | तन्नो' हंसः प्रचोदया''त् ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः' ||
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