मन्यु सूक्तं
MANYU SUKTAM
मन्यु सूक्तं
MANYU SUKTAM
ऋग्वेद संहिता; मण्डलं
10; सूक्तं 83,84
यस्ते'' मन्योऽवि'धद्
वज्र सायक सह ओजः' पुष्यति विश्व'मानुषक् |
साह्याम
दासमार्यं त्वया'' युजा सह'स्कृतेन सह'सा
सह'स्वता || 1 ||
मन्युरिन्द्रो'' मन्युरेवास' देवो
मन्युर् होता वरु'णो जातवे''दाः |
मन्युं विश' ईलते
मानु'षीर्याः पाहि नो'' मन्यो तप'सा
सजोषा''ः || 2 ||
अभी''हि
मन्यो तवसस्तवी''यान् तप'सा युजा वि ज'हि
शत्रू''न् |
अमित्रहा वृ'त्रहा
द'स्युहा च विश्वा वसून्या भ'रा त्वं नः' || 3 ||
त्वं हि म''न्यो
अभिभू''त्योजाः स्वयम्भूर्भामो'' अभिमातिषाहः |
विश्वच'र्-षणिः
सहु'रिः सहा''वानस्मास्वोजः पृत'नासु
धेहि || 4 ||
अभागः सन्नप परे''तो
अस्मि तव क्रत्वा'' तविषस्य' प्रचेतः |
तं त्वा'' मन्यो
अक्रतुर्जि'हीलाहं स्वातनूर्ब'लदेया''य
मेहि' || 5 ||
अयं ते'' अस्म्युप
मेह्यर्वाङ् प्र'तीचीनः स'हुरे विश्वधायः |
मन्यो'' वज्रिन्नभि
मामा व'वृत्स्वहना''व दस्यू''न्
ऋत बो''ध्यापेः || 6 ||
अभि प्रेहि' दक्षिणतो
भ'वा मेऽधा'' वृत्राणि' जङ्घनाव
भूरि' |
जुहोमि' ते
धरुणं मध्वो अग्र'मुभा उ'पांशु प्र'थमा
पि'बाव || 7 ||
त्वया'' मन्यो
सरथ'मारुजंतो हर्ष'माणासो धृषिता म'रुत्वः
|
तिग्मेष'व
आयु'धा संशिशा''ना अभि प्रयं''तु
नरो'' अग्निरू''पाः || 8 ||
अग्निरि'व
मन्यो त्विषितः स'हस्व सेनानीर्नः' सहुरे हूत ए''धि |
हत्वाय शत्रून्
वि भ'जस्व वेद ओजो मिमा''नो विमृधो'' नुदस्व
|| 9 ||
सह'स्व
मन्यो अभिमा''तिमस्मे रुजन् मृणन् प्र'मृणन्
प्रेहि शत्रू''न् |
उग्रं ते पाजो'' नन्वा
रु'रुध्रे वशी वशं'' नयस एकज त्वम् || 10 ||
एको'' बहूनाम'सि
मन्यवीलितो विशं''विशं युधये सं शि'शाधि
|
अकृ'त्तरुक्
त्वया'' युजा वयं द्युमंतं घोषं'' विजयाय' कृण्महे
|| 11 ||
विजेषकृदिन्द्र' इवानवब्रवो(ओ)3'ऽस्माकं'' मन्यो
अधिपा भ'वेह |
प्रियं ते नाम' सहुरे
गृणीमसि विद्मातमुत्सं यत' आबभूथ' || 12 ||
आभू''त्या
सहजा व'ज्र सायक सहो'' बिभर्ष्यभिभूत
उत्त'रम् |
क्रत्वा'' नो
मन्यो सहमेद्ये''धि महाधनस्य' पुरुहूत संसृजि' || 13 ||
संसृ'ष्टं
धन'मुभयं'' समाकृ'तमस्मभ्यं'' दत्तां
वरु'णश्च मन्युः |
भियं दधा''ना
हृद'येषु शत्र'वः परा''जितासो अप निल'यन्ताम्
|| 14 ||
धन्व'नागाधन्व' नाजिञ्ज'येम
धन्व'ना तीव्राः समदो'' जयेम |
धनुः शत्रो''रपकामं
कृ'णोति धन्व' नासर्वा''ः प्रदिशो'' जयेम
||
भद्रं नो अपि' वातय
मनः' ||
ॐ शान्ता' पृथिवी
शि'वमन्तरिक्षं द्यौर्नो'' देव्यऽभ'यन्नो
अस्तु |
शिवा दिशः' प्रदिश' उद्दिशो'' नऽआपो'' विश्वतः
परि'पान्तु सर्वतः शान्तिः शान्तिः शान्तिः' ||
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